किसानों के लिए उन्नत फसल या मुनाफ़ेदार फ़सल एक बहुत बड़ा सवाल बनते जा रहा है इसके लिए वह विभिन्न प्रकार के रासायनिक उर्वरकों या खादों का भी इस्तेमाल भी कर रहे हैं लेकिन इससे फायदा तो होता है लेकिन नुकसान भी काफी मात्रा मेें होता है। इसके लिए प्राकृतिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जैविक खेती का इस्तेमाल ही सरल व समृध्द के साथ-साथ बिना लागत या बहुत ही कम लागत का भी होगा। और सबसे अच्छी बात तो यह है की प्राकृतिक दृष्टि से इसका कोई नुकसान भी नहीं है। जैविक खेती को नाम वैज्ञानिको ने दिया है क्योंकि वो वर्तमान में हो रही खेती को पारम्परिक या आधुनिक खेती मानते है वैसे अगर भारत की बात करे तो भारत में आजादी से पहले पारम्परिक खेती जैविक तरीके से ही की जाती थी जिसमे किसी भी प्रकार के रसायन के बिना फसले पैदा की जाती थी लेकिन आजादी के बाद भारत को फसलो के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए हरित क्रान्ति की शुरुवात हुई जिसमे रसायनों और कीटनाशको की मदद से उन फसलो का भी भरपूर मात्रा में उत्पादन किया जाने लगा जिसके बारे में कभी सोच भी नही सकता था हरित क्रान्ति के कारण गेंहू , ज्वार , बाजरा और मक्का की खेती में काफी विकास हुआ था।
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इस हरित क्रान्ति के दौरान 1960 के दशक में जहाँ प्रति हेक्टेयर 2 किलोग्राम रासायनिक उर्वरक का प्रयोग किया जाता था वही आज प्रति हेक्टेयर बढकर लगभग 100 किलोग्राम से भी ज्यादा हो चूका है तो ज़रा सोचिये कि फसलो में कितना रसायन का उपयोग किया जा रहा है। हरित क्रान्ति के कारण जिस जैविक खेती को भारत बरसों से आजमा रहा था वो खत्म हो चुकी थी और रसायनों के इस्तेमाल से की जाने वाली खेती को पारम्परिक खेती माना जाने लगा जिसमे भरपूर मात्रा में रसायनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। वर्तमान की इस पारम्परिक खेती में हालांकि खाद्यानो का काफी उत्पादन हो रहा है लेकिन मिट्टी की उर्वरक शमता घटती जा रही है जिसके कारण कई खेत तो बंजर हो चुके है।
अब वर्तमान में रासायनिक खेती के बढ़ते प्रभाव को देखकर वैज्ञनिको ने इसे घातक सिद्ध कर दिया जिससे ना केवल मिट्टी बल्कि मनुष्य की सेहत पर भी इसक असर पड़ रहा है। इसी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए वैज्ञानिकों ने जैविक खेती को मिट्टी की उर्वरक और इंसानों की सेहत के लिए अच्छा बताया है । आज अनेको बीमारियों से पीड़ित लोगो को जैविक खेती से उपजी फसलो को खाने की हिदायत दी जाती है जिसके कारण कई किसानो ने जैविक खेती को अपनाना शूर कर दिया है । हालांकि अभी जैविक खेती बहुत ही छोटे स्तर हो रही है लेकिन अगर जागरूकता फैलाई जाए तो आने वाले समय में यह पारम्परिक या आधुनिक खेती का रूप ले लेगी।
रासायनिक उर्वरको की आधिक मात्रा के कारण जैविक खाद का प्रयोग कम हुआ है इसलिए मिट्टी में उपलब्ध खाद की मात्रा कम हुयी है। इससे मिट्टी की बनावट और मिट्टी में वायु संचरण प्रभावित हुआ है। रासायनिक उर्वरको के इस्तेमाल से मिट्टी में सूक्ष्मजीवियो की संख्या कम हुयी है और मिट्टी की जलभराव क्षमता और रसाव भी कम हुआ है। बहते पानी ने उपजाऊ उपरी मिट्टी को बहा दिया है। रासायनिक उर्वरको से उपजी फसलो के उपयोग के कारण मानव को कई दीर्घकालिक बीमारियों से झुझना पड़ रहा है।
इन्ही रासायनिक उर्वरको का दुष्परिणाम है कि नवजात बच्चे भी मधुमेह (शुगर ) जैसी बीमारियों से पीड़ित होते है और 20 साल की आयु में ही जवानो के बाल सफेद होने लगते है। इसके अलावा कैंसर जैसी असाध्य बीमारी का भी इन सबसे सीधा संबध है। किसानो को रसायन खरीदने के लिए बाहरी एजेंसीयो पर निर्भर रहना पड़ता है जिसके लागत काफी होती है जिससे खेती में मुनाफा केवल एक धोखा रह गया है। इसी कारण किसान खुदखुशी की ओर अग्रसर हो रहे है । यही कारण ही आने वाली पीढ़ी खेती को ना अपनाकर शहर की ओर रुख कर रही है। सरकार इस समस्या के असली निदान की बजाय ऋण पैकेज घोषित करती है। इस जटिल समस्या का एकमात्र निदान टिकाऊ या जैविक खेती है।
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आजकल खेती की गैर रासायनिक कई विधियों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसमे जैविक खेती, प्राकृतिक एशून्य जुताई, टिकाऊ खेती, जैव गतिशील एवैदिक खेती आदि कई नये शब्द प्रचलित है जो किसानो में शंका पैदा करते है। जैविक खेती ऐसी होनी चाहिए जिससे पौधों और अन्य जीवियो के स्वस्थ में सुधार हो। यह जैव विवधिता को संवर्धित और संरक्षित करने वाली होनी चाहिए। जैविक खेती करने के लिए स्थानीय सामग्रियों का इस्तेमाल कर इसे तैयार किया जाता है। अगर खेती लाभदायक हो जाए तो शहरों की तरफ युवाओं का पलायन कम हो जाएगा। इस प्रकार जैविक खेती पर्यावरण के नाश और प्रदुषण का हल कर सकती है।
जैविक खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे आप अपने खेत की मृदा(मिट्टी) और उर्वरक शक्ति को लम्बे समय तक संरक्षित कर सकते है जिससे बिना रसायनों के उपयोग से भी लाभदायक खेती की जा सकती है। जैविक खेती के उपयोग के बाद आप अपने खेतो में वो फसले भी बो सकते है जो आज तक नही हुयी हो क्योंकि मृदा की उर्वरा शक्ति बढने के बाद किसी भी तरह की फसल बोई जा सकती है। जैविक खेती का सीधा प्रभाव पशुओ पर भी पड़ेगा क्योंकि उनको मिलने वाले भोजन में रसायन की मात्रा नही होगी तो उनके द्वारा दिए गये दूध की गुणवता भी बेहतर होगी और पशुओ का स्वस्थ भी बेहतर होगा। पशुओ के साथ साथ मनुष्यों पर भी इसका दीर्घकालिक परिणाम होगा जिससे कई असाध्य बीमारियों से बचा जा सकता है और अपने सेहत को तन्दुरुस्त बनाया जा सकेगा। जैविक खेती से शुरुवात में थोड़ी परेशानी होगी लेकिन दीर्घकालिक आपकी फसलो की गुणवता बेहतर होगी जिससे आपको मुनाफा भी काफी अच्छा मिलेगा।