मिट्टी में सल्फर की कमी के कारण प्याज में आने वाली नई पत्तियां पीले रंग की हो जाती हैं। यदि सल्फर की कमी बहुत ज़्यादा हो तो पूरे पौधे का रंग पीला हाे जाता है। तने तथा पत्तियां में बैंगनीपन आने लग जाता है। सल्फर पौधों में विटामिन तथा एंजाइम के निर्माण में सहायक होता है। दलहनी में यह जड़ों के ग्रंथी के निर्माण के लिए आवश्यक होती है जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण करती है। प्याज, सरसों व लहसुन में उनकी प्राकृतिक गंध का कारण भी सल्फर ही होती है। गंधक प्याज में प्रोटीन की मात्रा को बढ़ाने में भी सल्फ़र सहायक होती है साथ ही गंधक पर्णहरित लवक के निर्माण में भी इसका सहयोग होता है इसके कारण पत्तिया हरी रहती है तथा पौधों के लिए भोजन का निर्माण हो पाता है।
प्याज की फ़सल में सल्फर की कमी के लक्षण:-
प्याज की फ़सल में सल्फर की कमी होने पर प्याज़ की नई पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगता है। तथापि पत्तियों का पीला रंग नाइट्रोजन की कमी के कारण भी होता है परंतु नाइट्रोजन देने से भी पतियों का पीलापन अगर नहीं रुकता है तो समझ लेना चाहिए की यह पीलापन सल्फर की कमी कारण से हो रहा है ।
सल्फर का प्रयोग कब तथा किस प्रकार करें:-
सल्फर से युक्त खादो का उपयोग बुवाई के पहले अंतिम जुताई के समय ही करना उचित होता है । किसानों को मिट्टी की प्रयोगशाला द्वारा जारी किए जा रहे मिट्टी(मृदा) स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार ही सल्फर की मात्रा एक बार में ही मिट्टी में मिला देना चाहिए।
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